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Wednesday, 5 March 2025

वो चाहते है

 एक वो जो पीठ पर वार करते है...

अपनी आंखों में मेरे लिए खार करते है...

फिर वो चाहते है कि मैं उन्हीं के शब्दों की गजल लिखूं..

जिसमें मेरी मौत का सामान हो...

जिसमें मेरे ही खिलाफ जंग का ऐलान हो..

और हर आदमी पढ़ के हैरान हो...

फिर भी मैं सबकी उम्मीदों पर आता हूं...

कड़वे सवालों को भी घेर कर लाता हूं...

ऊपर से ये की मैं तुम्हारे भी सवालों को जवाब लिखूं...

जिसे पढ़ कर मेरे ही खिलाफ कोई आगाज हो...

मेरे दुश्मन ही मेरे यार हो...

उन पर मेरा ही दिया हुआ हथियार हो...

उस पर ये कि मैं उन्हीं का घोला हुआ जहर पीऊं...

ताकि बंदा मर के भी उन पर अहसान हो...

तमाशबीन देख कर भी हैरान हो..

Sunday, 21 July 2024

Jindgi

 


वो जो किताबों से परे है सांई..

वो जो ख्यालों से इतर है सांई 

वो जिन पर सुकून ठहरता है...

कहां मंजिल की ठोर देखता है सांई...

सब मिलेगा....

जरा...हालातों को पलट कर तो देखो सांई ...

वो जिस से तुम उलझते हो सांई....

वो जिसे बुरा वक्त कहते हो.

वो सब मन का वहम है सांई...

सब तुम्हारी सोच के ठहराव का परिणाम है....

जरा इसे बदलो सांई....

नए सिरे से सोचो सांई....

ख्यालों के नए चश्मे लगाओ तो सांई....

उतर के नीचे आओ तो सांई...

नज्म कोई गुनगुनाओ सांई....

छोड़ो किताबें, जिंदगी थोड़ी जीओ साईं....

मजा सब सफर का है....

मंजिल की चिंता छोड़ो सांई...

मजा सब यहीं है मित्रा.....

ये पल सुकून से जिओ सांई....

सब सोच का खेल है सांई...

सब संतोष का खेल है....

Saturday, 25 May 2024

आ बैठ सिरहाने जिंदगी

 आ बैठ सिरहाने जिंदगी,

दो घूंट सबर ले जिंदगी.....

आ बैठ सिरहाने जिंदगी...

दुखों का टूटता पहाड़ देख,

मुझमें अडिग विश्वास देख.....

देख सबर की प्रकाष्ठा,

छलनी मेरे पांव देख....

आ देख खामोशी जमाने की,

मुझमें उठता तूफान देख..

आ बैठ सिरहाने जिंदगी,

दो घूंट सबर ले जिंदगी....

समय रथ की चाल देख,

मंगल अमंगल, शुभ अशुभ,

पग पग परीक्षाकाल देख.....

देख चराचर सहगामी...

मुझमें सिमटा एकांत देख.....

तूं अहसान भूलता इंसान देख,

उनको मेरे लिए बुनता जाल देख...

आ बैठ सिरहाने जिंदगी,

दो घूंट सबर ले जिंदगी.....

अधरों में झूलते ख्वाब देख,

निज दिन उठते सवाल देख....

तूं अंतर-मन के घाव देख,

ठोकरों से भी सीखता इंसान देख...

देख जरा आत्म-शक्ति,

खंडहरों पर बनता मेरा मकान देख...

जो मुश्किल दौर में निडर डटे,

आदम कितना महान देख....

आ बैठ सिरहाने जिंदगी, दो घूंट सबर धर जिंदगी...

मुझसे सीख तूं जिंदगी, आ जीना सीख तूं जिंदगी...

आ बैठ सिरहाने जिंदगी...........२


Sunday, 25 February 2024

चार यार

 गुनगुना सा कोई गीत  हो...चिल्ड सा संगीत हो...

चार यार हो फिर साथ में, जग जहान जीत हो....!!

कुछ अनकही अधूरी कहानियां हो...कुछ प्रेमपत्र साथ हो...

एक अंगीठी पर रुकें, और  गरमा गर्म चाय हो....

दिसंबर की शाम हो....फिर मानसरोवर में स्नान हो...

चार यार हो फिर साथ में....पहाड़ों पर आखरी मेरा मकान हो...

गुनगुना सा कोई गीत हो.....चिल्ड सा संगीत हो....

चार यार हो फिर साथ में, जग जहान जीत हो....!!

जगलों का राह हो..... डरावनी सी आह हो...

एक मोड़ पर गाड़ी रुके.....रात अंधेरी स्याह हो...

सन्नाटे को चीरती कोई घुंघरुओं की आवाज हो...

हम साथ मिल चल पड़ें जिस दिशा में ये मधुर साज हो...

चार यार हो फिर साथ में....डर वाली फिर क्या बात हो...

गुनगुना सा कोई गीत हो.....चिल्ड सा संगीत हो....

चार यार हो फिर साथ में, जग जहान जीत हो....!!

पहली शाम बिताएं बर्फीली घाटियों में.....अगला ठिकाना रेगिस्तान हो...

कुछ भूले बिसरे नगमे हो....कुछ बरसों पुरानी दास्तान हो...

एक पहाड़ी घाटी से गुजरें, जिसका रास्ता अनजान हो...

दूसरी दुनिया में घूमें कही...गूगल मैप भी परेशान हो.....

चार यार हो फिर साथ में...ना पैसा खत्म हो जेब में ना साली थकान हो....

चार यार हो फिर साथ में...बस चार यार हो फिर साथ में...

गुनगुना सा कोई गीत हो.....चिल्ड सा संगीत हो....

चार यार हो फिर साथ में, जग जहान जीत हो....!!

Saturday, 17 February 2024

मिनखां

 


कट्ठ: सुत्यो रे मिनखां..... क्यूं मिनख जूणी  रो नाश कर:.....

तूं लखदातार कहीज मिनखां..... क्यूं रिपीय रिपिय री बात कर...

क्यूं कूड़ रा सौदा कर: मिनखां..... क्यूं पाप रो घड़ियो भर:....

आ मिनख जूणी मिली मिनखां....कोई साचां शब्दां रो बोपार कर:

कट्ठ: सुत्यो रे मिनखां..... क्यूं मिनख जूणी रो नाश कर:.....

आपा सगळा री बात करो मिनखां... क्यूं आप आप री जात कर:

किन बिसर बैठ्यो मिनखां.... क्यूं खरड़: ठीय उजास कर:

आपा सगळा रो मेळो मिनखां... कोई सुख दुख रो साथ कर:

कट्ठ: सुत्यो रे मिनखां..... क्यूं मिनख जूणी रो नाश कर:.....

क्यूं भाइपो छोड: रे मिनखां..... क्यूं समाज म अड़कांस कर:

क्यूं राम नीसरयो फिर: मूरखा.... क्यूं रिपियां पर मर: मूरखा...

क्यूं मिनखा रो बैरी बण: मिनखां..... कोई सुरसती मुख माथे बास कर:

कट्ठ: सुत्यो रे मिनखां..... क्यूं मिनख जूणी रो नाश कर:.....

Sunday, 11 February 2024

कच्चे मकान

 मैं सूखे दरखतों तले, बारिश का इंतजार करता हूं.....

खो जाता हूं अक्सर बिखरी पत्तियों के धुंधलके में....

मैं कच्चे मकानों के उजड़ने जाने का इंतजार करता हूं....

कि कहीं और तो यात्रा करेंगे ये भूखे परिंदें ....

की ये मकाँ उजड़े तो नई जगह की तलाश होगी....

आदम जात है, गिरेंगे, लड़ेंगे, चलेंगे तो सीख जायेंगे.....

यूं तो टपकती छत से निकल पाना संभव नहीं गरीबी में....

कभी तूफानों से टकराएंगे तो जीने का जज्बा जागेगा....

मैं अक्सर सोचता हूं कि कैसे जी लेते है वो लोग दबकश में,

कैसे रह लेते है, एक ही जगह, बिना कुछ नया सीखे.....

हां कि तुमने, किताबें पढ़ीं है....

हां कि तुमने, कमाना सीख लिया है....

हां कि तुम अच्छे से जीवन बसर करते हो...

क्या तुमने जिज्ञासा को कच्चे मकानों से बाहर निकाला है???

क्या तुम अब भी बस ऊंचे ओहदे पर नौकरी पाना ही जिंदगी समझते हो???

यदि हां, तो मैं आज भी कच्चे मकानों के उजड़ने का इंतजार करता हूं....!!

#शर्मादीपू की कलम से

#जिज्ञासा #कलम #hindi 


Wednesday, 31 January 2024

TUM POEM

 सुनो अगर तुम पास बैठो तो

तो मैंने 

कुछ अरमान जगाने है...

कुछ दर्द सुलाने है....!!

कुछ पंक्तियां लिखनी है.....

उन्हें तुम्हें सुनाना है......

फिर मैंने उन्हें मिटा देना है......

और दुबारा एक नई नज्म लिखनी है...

फिर तुम्हें सुनाना है....

फिर उसे मिटाना है....

फिर वही सिलसिला दोहराना है...

तब तक

जब तलक तुम्हारी आंखें भी पलकों का वजन उठाना मना कर दे...

जब तलक की तुम गहरी नींद में भी दाद देना बंद कर दो...!!!

ये अरमानों की गठरी समेट कर....

 मेने सपनों पर सिर रखकर सो  जाना है....

मेने ख्वाबों में तेरा हो जाना है...!!

जागने से पहले हमने मिलकर सपनों का शहर बसाना है....

बस अगर तुम पास बैठो तो....!!!!!!

अगर तुम पास बैठो तो......

तो....

मैंने एक धीमी अंगीठी जलानी है...

और तुम्हें कुछ बातें बतानी है...

एक दास्तान सुनानी है....!!

मुझे तुम्हारी hmmmm सारी रात सुननी है....

मुझे तुम्हारी, तुम्हे मेरी हर बात सुननी है....!!

मुझे आधी रात एक नशा करना है...

कप भरके ये जाम तेरे हाथ से बना होगा...

मुझे इस नशे को आखिरी बार करना है....

ये नशा आखिरी बार सुबह का पहले जाम होना है...

बस ये नशा फिर मैंने छोड़ देना है...

मेरा ये दूसरा प्यार मेने तोड़ देना है....

बस अगर तुम पास बैठो तो....!!!

अगर तुम पास बैठो तो.....

मैंने रात को दिन बनाना है...

मैंने हम दोनो का दिन बनाना है....!!

एक नया सवेरा लाना है....

चांद पर नया बसेरा बनाना है....!!

मुझे अपनी कलम से एक अधूरी कहानी पूरी करनी है....

एक नज्म में आखिरी शेर लिखने है......

मुझे हर पंक्ति में पूर्णविराम देना है....!!

मुझे तुम्हारी किताब का हर पन्ना पढ़ना है...

मैंने अपनी डायरी का हर पन्ना पलटना है....

मुझे तुम्हें बिना छुए....

तेरे हर अरमान पाने है....

तेरी आंखों के हर ख्वाब पाने है....

मुझे एक आखरी जाम पीकर नशेड़ी होना है....

अगर तुम पास बैठो तो.....!!!

अगर तुम पास बैठो तो.....

मैंने एक तस्वीर लेनी है....

मेरी लिखते हुए की....

तुम्हारी सुनते हुए की....

मुझे एक सेल्फी लेनी है....मेरे जज्बातों की.....

मैंने एक चादर बिछानी है....उस पर हाथ का तकिया बनाना है....

और तकिए पर तुम्हारे ख्वाब सुलाने है....

मुझे एक नीरस कविता में रस भरना है....

मुझे एक कविता को तुम्हारे सामने पढ़ना है ....

मुझे रंग भरना है....एक तस्वीर में....

जो धुंधली सी खो गई है...

दर्दों की दवा सी हो गई है...

मुझे एक खुशबू को रसासार करना है....

मुझे चुंबकीय ध्रुवों को एकाकार करना है....

अगर तुम पास बैठो तो.....!!!

अगर तुम पास बैठो तो.....


Monday, 29 January 2024

अच्छा लगेगा

 तुम नजरें मिला लेना मुझसे 

अगर तुम सच में खुश हो बिछड़कर मुझसे ...

हम भी मुस्कुरा कर मिलेंगे तुम्हे हर गम छिपाकर, ये वादा है मेरा

और तो क्या खुशी होगी, मगर तुम्हे अच्छा लगेगा....!!


मरियम तुम याद कर लेना कभी मजबूरी में,

जब तन्हाई तुम्हें अंदर से जख्म देने लगे,

जब जिंदगी में तुम्हें सारे रास्ते बंद मिलने लगे..

हम आए या ना आए काम तुम्हारे, मगर तुम्हें अच्छा लगेगा...!!



एक सुकून मुझ में जिंदा रख देना मरियम,

मेरे ख्वाबों को ख़ाक होने से बचा लेना....

जलते मकाँ से और कुछ बचा ना सको कोई बात नही...

मेरी एक तस्वीर बचा लेना, तुम्हें अच्छा लगेगा....!!


एक हाथ थामने का वादा था तुम्हारा...

थक जाओ तो खुशी खुशी वादा तोड़ देना....

सफर के मुकाम पर पलट कर देखना...

मेरा मुस्कुराता चेहरा देखकर, तुम्हें अच्छा लगेगा......!!


Sunday, 21 January 2024

सवाल

कुछ सलाखें टूट नहीं पाई...

कुछ जख्म बाहर तक भी नहीं आए....

कुछ खो गए बदहाल भीड़ में....

कुछ ख्वाब मेरे शहर तक भी नहीं आए...

कुछ अधूरी रह गई कहानियां....

कुछ जिद्द बचपन में ही छोड़ आए ....

कुछ सवाल डूब मरे किस्तियों के सफर में.....

कुछ मारे डर के, बहर तक भी नहीं आए....

कुछ पहाड़ों ने भी रस्ते नहीं छोड़े...

कुछ सरिताओं को जिद्द करनी भी नहीं आई....

कुछ को जिम्मेदारियों ने उठा दिया सबेरे सबेरे......

कुछ सरकारी बाबू , दोपहर तक भी नहीं आए...

# hindi #poetry 

Wednesday, 27 December 2023

Safar aakhiri

 ये सफर आखरी है, लाजमी है कि खुद को कहीं क्षणभर ,ठहरा दिया जाए...

दो बख्त खुद को पहरा दिया जाए....

कूच करेंगे नए जोश से ..

आज के लिए इन्हीं दुर्गों पर विजयध्वज, फहरा दिया जाए....!!

ये सफर आखरी है, लाजमी है कि खुद को कहीं क्षणभर, ठहरा दिया जाए...

घड़ी दो घड़ी, आराम किया जाए...

एक रात, मेरे कदमों में बिछाई जाए....

नींद आए सुकून से, कि मुझ पर पहरे दिए जाए...

ऐलान सुनाया जाए...एक रात के लिए मेरे ख्वाब रोके जाए...

कल का सूरज हम लाल देखेंगे....

उठेंगे ,लड़ेंगे, गिरेंगे और फिर उठकर हम काल देखेंगे....

गले मिलेंगे दोनो बाजुएं खोलकर लाल लहू से...

आन -बान, रण -प्रण, काली -कपाली,....ये सब आखरी बार दोहरा दिया जाए

ये सफर आखरी है, लाजमी है कि खुद को कहीं क्षणभर ,ठहरा दिया जाए...





Tuesday, 26 December 2023

सोचता हूं

 सोचता हूं कि बिखरे लम्हे समेटूंगा कभी देर-सबेर

पर फिर कभी फुरसत नहीं मिलती....और कभी मैं खुद को भी नहीं मिलता..!!

सोचता हूं लम्हें कुरेंदेंगे कभी नदियों किनारे.....

एक दो गिलास जहर गले तक उतारेंगे....

कभी शाम को बैठेंगे अपने यारों के साथ.....

एक शाम मैं अपने लिए भी वक्त निकालूंगा....

मगर कभी मेरा मन नहीं होता.....और कभी कभी मुझे समय भी नहीं मिलता !!

सोचता हूं कि एक किताब में समेटु सारे अधूरे ख्वाबों को...

एक दो रंगीन कागज भी रखूं उनके बीचों बीच....

कभी कभी सोचता हूं कि ये सब उलझनें छोड़ दूंगा डायरियों में भरके....

फिर कभी डायरी नहीं मिलती, और कभी मेरे ख्यालों को, मैं भी नहीं मिलता...!!





 

Monday, 2 October 2023

अब तलक

इन चोगाठों को समेत दरवाजे उखड़ जाना चाहिए था अब तलक ....
गुमराही एक मुद्दत हो गई, खिड़कियों से इंतजार करते हुए.....!!
इन अलमारियों से असल किताबें उतर जानी चाहिए थी अब तलक...
एक जमाना बीत गया जालिम, दीमकों का बाजार खुले हुए....!!
इन झीलों से अब तलक तो नमक बहकर आना चाहिए था....
मुझे एक नई शाम ढल आई , अधभरे घाव खोले हुए......!!
उस परदेशी को  लौट आना चाहिए था सफर से अब तलक....
कई बरस बीत चले है राही, मेरी मंजिल छूटे हुए.....!!
उन सैतानों का भी तो कब्जा होना चाहिए था अब तलक.....
कई दौर गुजर गए है, इंसानों की इंसानियत मरे हुए...!!

Thursday, 10 August 2023

बाकी है

 बाकी है...

ये रात बाकी है....

अभी ख्वाब बाकी है....!!

एक अधूरी कहानी बाकी है.....

अभी दुनिया को सुनानी बाकी है.....!!

अभी तारों का जमीं पर उतरना बाकी है...

अभी पत्थरों का टूटकर बिखरना बाकी है....!!

अभी मेरे अंदर का तूफान बाकी है...

अभी गांव का आखिरी मकान बाकी है....!!

अभी किस्मतों का रूठना बाकी है...

कुछ समन्दरों का अभी सूखना बाकी है.....!!

एक पहाड़ चढ़ना बाकी है...

अभी जमीं पर उतरना बाकी है....!!

अभी समय बाकी है....

मेरा समय आना बाकी है....!!

एक गीत बाकी है....

अभी गुनगुनाना बाकी है....!!

एक ख्वाब बाकी है...

ख्वाबों का हकीकत होना बाकी है....!!

मेरे दिल की तमन्नाएं बाकी है....

दफन कुछ आरजुएं बाकी है....!!

अभी कोरे कागज बाकी है...

दीपक तेरी कलम में स्याही बाकी है.....!!

अभी मेरे विचार बाकी है....

अभी एक आखिरी गजल बाकी है....!!

अभी एक सवेरा बाकी है....

अभी एक शाम ढलनी बाकी है.....!!

अभी एक सिर कलम होना बाकी है...

अभी मेरे तरकश में तीर बाकी है....!!

एक किनारा बाकी है....

अभी कुछ समंदर बाकी है.....!!

एक कविता बाकी है...

अभी मेरे कोश में एक शब्द बाकी है....!!

हरियाली एक खेत की बाकी है...

पानी के लिए अभी एक रेगिस्तान बाकी है....!!

मेरी अभी एक प्यास बाकी है....

पत्ते पर आखरी ओस बाकी है....!!

कुछ फरिश्तों का जमीं पर उतरना बाकी है...

अभी एक आखिरी सीढी बाकी है.....!!

मुझ में एक जज्बा बाकी है...

अभी मुझमें जान बाकी है....!!

आखिरी एक पहर बाकी है....

मेरी जद में अभी शहर बाकी है....!!

आखिरी कुछ अल्फाज बाकी है...

मुझमें दफन कुछ राज बाकी है....!!!

सब कुछ बाकी है...

अभी सब कुछ बाकी है...!!

Saturday, 29 July 2023

सवार हूं

दर्द का सैलाब हूँ...

हां मैं टूटता ख्वाब हूँ....

कभी बालू रेत सा गर्म

कभी हिमालय सा शांत हूँ....


मैं बारूद हूं ठंडी आग का....

मैं किसी योगी के धूंने की राख हू....

हां मैं फटेहाल किताबों की धूल हूं....

हां मैं शाश्वत श्लोकों की भूल हूं....

हां मैं उलझनों की किताबों का...

एक अनकहा सवाल हूं....

हां मैं टूटता एक ख्वाब हूं....

मैं सूखता सा पेड़ हूँ

हां मैं जड़ो पर सवार हूँ....

उम्मीद की किरण हूँ मैं

हां मैं डूबता अंधकार हूं....

हां मैं टूटता एक ख्वाब हूँ....

खंडहरों की दीवार का,

मैं गुनगुना सा अहसास हूं....

उड़ चुके रंगों का,

मैं धुंधलका एक आभास हूं....

युद्धों के अवशेषों से,चीखती खामोशियों में....

मौन पड़ी एक तलवार हूं...

मैं एक युद्ध का परिणाम हूं...

मैं एक टूटता सा ख्वाब हूं.....

उलझनों से बदहाल हूं....

पटरियों पर दौड़ता सा ख्वाब हूं.....

मैं उम्मीदों की आस पर टिकी,

रेंगती जिंदगी का हाल हूं..

खंगाल रहा हूं बहियां पुरानी....

मैं ठोकरों से शेष का सवाल हूं....

हां मैं टूटता एक ख्वाब हूं....



.......inspried by zakir_khan

#zakirkhan #poetry #shunya #hindi #sharmaDeepu #swaar

Monday, 17 July 2023

एक साल - AS a patwari

 क्या हाल पटवारी जी??.... अब तो एक साल हो गया....

क्या हाल भूमापक जी??.....चेहरा क्यों लाल हो गया.....??

एक साल में फीलिंग सी मर गई🤣....ऐसा क्यों कहते हो...??

मॉडल तहसीलों में जाकर भी, ठल्ले क्यों रहते हो🤣....??

सच बताना , भू प्रबंध के भावी निरीक्षकों ......समय पर तनख्वाह कभी आई है🤣????

13000 की दिहाड़ी कभी....पहली तारीख को पाई है🤣...???

वैसे कुछ भी कहो, इस विभाग में मजा बहुत आता है.....

एक बार जो छोड़ के गया, वो वापिस आने को तरस जाता है....

कितने ही बन गए VDO, कितने ही अध्यापकों के जाने की बारी है.....

कितनों की ही EO/RO,SI,पीटीआई और RAS में जाने की तैयारी है.......

कुछ बैठे है मेरे जैसे, डीपीसी भरोसे.....कुछ की अगली पटवारी भर्ती की तैयारी है....🤣🤣🤣🤣

चलो छोड़ो भी, जाने भी दो.....ये बताओ....साल कैसा बीता है...??

भू प्रबंध के भू मापको , नोकरी लग के गढ़ किस - किसने जीता है🤣🤣??

एक साल ........राजस्थान सरकार के सेवार्थ

एक साल.......सेटलमेंट के सेवार्थ....

एक साल पूर्ण


Thursday, 15 June 2023

आहिस्ता आहिस्ता

 आहिस्ता आहिस्ता जिंदगी में सुकून आ रहा है.....

आहिस्ता आहिस्ता जख्मों से खून आ रहा है.....

सब्र है कि ठंडी नहीं पड़ी अभी नशें मेरी.....

आहिस्ता आहिस्ता लहू में भी जून आ रहा है....!!!

मेरी कलम की स्याही सूखी नहीं अभी.....

मुझमें आहिस्ता आहिस्ता लिखने का जनून आ रहा है...

वो जो काटे है मेने दरखत नीरस वक्त के.....

वो जो लिख कर काटे है मैने शब्द रक्त के......

सब अजनबी चेहरों से वाकिफ हो आया दौर ए इल्म में

आहिस्ता आहिस्ता मुझमें सब्र का खून आ रहा है...

आहिस्ता आहिस्ता जिंदगी में सुकून आ रहा है.....!!!

Saturday, 13 May 2023

लड़के हो तुम

 हमें बचपन से ही strong बना दिया जाता है...

हमें बड़ा लाड किया जाता है

बड़ा प्यार किया जाता है

गलतियों पर डांट दिया जाता है

कभी कभी हमें मार भी दिया जाता है...

फिर पुचकार दिया जाता है...

और कह दिया जाता है

तुम लड़के हो! ऐसे रोया थोड़ी ना जाता है...!!

थोड़े बड़े होते ही किताबों का बोझ डाल दिया जाता है

कामयाब होने का बोझ कंधों पर लाद दिया जाता है

हमारे सपनों को आंखों में कैद कर दिया जाता है

हमारी भावनाओं को अंदर ही मार दिया जाता है...

 काबिलियत हमारे MARKS से जज कर ली जाती है

असफलता पर ताने मारे जाते है

सफलता पर 'किस्मत अच्छी थी' का टैग दे दिया जाता है.....

निराश होने पर कह दिया जाता है

तुम लड़के हो! ऐसे रोया थोड़ी ना जाता है...!!

ओकात हमारे कपड़ो से ही पहचान ली जाती जाती है

हमारी ताकत हमारी भुजाओं से नाप ली जाती है

हमारी खूबसूरती हमारी शक्ल से ही समझ ली जाती है

हमारे प्यार को पागलपन समझ लिया जाता है

अधूरे प्यार को 'कटवा लिया' का टैग दे दिया जाता है

हमारे हाथ मे सिगरेट थमा के कह दिया जाता है....

तुम लड़के हो! ऐसे रोया थोड़ी ना जाता है...!!

नोकरी लगने पर शादी करवा दी जाती है....

अनजान लड़की की मांग हमसे भरवा दी जाती है...

सपने पूरे करने से पहले गृहस्थी का बोझ डाल दिया जाता है...

पत्नी से प्यार करने पर जोरू का गुलाम कह दिया जाता है

रॉब दिखाने पर दहेज के केस कर दिया जाता है

इज्जत गंवाने के बाद कह दिया जाता है

तुम लड़के हो! ऐसे रोया थोड़ी ना जाता है...!!

शादी के बाद बच्चे पैदा करने दबाब डाल दिया जाता है...

बच्चे होने पर बाप होने का बोझ बढा दिया जाता है...

अपने सपने छोड़ ,बच्चों को संभालने की नसीयत दे दी जाती है

पैसा बचाने की जुगत सीखा दी जाती है....

जिंदगी सँवरने वाली ही होती है

की बाप का साया सिर से उठ जाता है

और लोग सान्त्वना देने आ जाते है

की यार.....

तुम लड़के हो! ऐसे रोया थोड़ी ना जाता है...!!

ये पंक्तियां #greeboo_नाम के एक लेखक की कविता के अवशेषों पर लिखी गई है....


Saturday, 4 March 2023

सेटलमेंट पटवारी

 हां मैं सेटलमेंट पटवारी हूं....

सर्वेयर कहूं? भूमापक कहूं? या अमीन कहूं.........???

Arrrree छोड़ो भी..... मैं जरीब वाला पटवारी हूं....

हां... मैं सेटलमेंट पटवारी हूं.....

बतलाता हूं जब बड़े चाव से कि मैं सेटलमेंट पटवारी हूं...

चर्चा बन जाता हूं गांव गवाड़ में, कि मैं कौनसी बीमारी हूं....

ये सेटलमेंट क्या होता है????

क्या मैं कोई प्राइवेट लिमिटेड कंपनी का कर्मचारी हूं???

दिखलाता हूं फिर आई कार्ड....

देखो दादा, मैं भी नोकर सरकारी हूं....

हां , मैं सेटलमेंट पटवारी हूं.....

कितनी मिलती है तनख्वाह तुमको....??

ऊपर से कितना कमाते हो...??

कलक्टर होते हो तुम तो गांव के....??

कोनसा जिला?कौनसी तहसील ?कोनसे हल्के के पटवारी हो??

क्या बतलाऊं दादा तुमको.....14600 है तनख्वाह मेरी....

440 मेरा RGHS कट जाता, 700 GPF में कटवाता हूं...

सेलरी आती नहीं टाइम पर, किराया भी घर से मंगवाता हूं...

झूठी हंसी लाकर चहरे पर...बड़े घमंड से कहता हूं...

हल्का हुल्का नहीं हूं दादा, 

अकेला सैंकड़ों राजस्व वालों पर भारी हूं.....!!

हां दादा, मैं भू प्रबंध का पटवारी हूं....

हां , मैं सेटलमेंट पटवारी हूं.....

अधिकार गिरवी पड़े है राजस्व वालों पर...वर्ना मैं भी पावरफुल कर्मचारी हूं...

नदियां बना दूं रेगिस्तान में भी...सरकारी नक्शे वाला पटवारी हूं..

DILRMP की गाइडलाइन लिए, मॉडल तहसीलों के गांव छानता...

कभी एसओ, कभी एएसओ , कभी तहसीलदार की बात मानता...

बिना TA के, बिना DA के, बिना मुहर के....

बिना अधिकारों के, मैं ग्राम भूपरबंध अधिकारी हूं.....

हां मैं सेटलमेंट पटवारी हूं....

DPC बैठेगी अलग या राजस्व में मेरा ट्रांसफर होगा?

कोई कहता है निरीक्षक बनोगे तुम लोग 5 साल में,

कोई कहता है डिपार्टमेंट राजस्व में मर्ज होगा....

क्या सपने देखे थे बंधु, क्या बनके बैठे है हम...

ना साइन कर सकते आय प्रमाण पत्र पर, 

ना परपत्र 4 को वेरिफाई कर सकते हम.....

17 सीसी का नोटिस लिए हाथ में,

कंपनी और राजस्व वालों के बीच फंसा लाचारी हूं....

हां मैं वही अधरझूल वाला पटवारी हूं....

हां मैं दैनिक डायरी वाला पटवारी हूं.....

हां मैं DGPS वाला पटवारी हूं....

हां मैं सीमाज्ञान वाला पटवारी हूं....

हां मैं अधिकारविहीन कर्मचारी हूं....

हां मैं तरमीम वाला पटवारी हूं!!

हां मैं बीस साला पटवारी हूं.....!!

हां मैं सेटलमेंट पटवारी हूं....

#settlememt #patwari #ShaRmaDeEpu #poetry #patwari #rajasthan #landSettlement 


Sunday, 26 February 2023

स्वप्रेरणा-दीपक

 मैं थकू भी तो कैसे?

मेरे नाजुक कंधों पर मेरी जिद्द की लाशें सवार है ....

मैं रुकूं भी तो कैसे?

मेरे अंदर एक लहू दौड़ता है जज्बे का,जिम्मेदारियों का...!!

मुझ पर एक बादल है, 

जो हर रोज बरसता है मुझपे, मेरी जमीं को हरा करता है....

हर रोज मुझमें उम्मीदों की फसल उगाई जाती है....

हर रोज मुझे सींचा जाता है....

हर रोज मेरे तने को मजबूत किया जाता है....!!

मैं बैठूं भी तो कैसे??

मेरे अंदर एक दीपक हर रोज दीपक जलाता है....

हर रोज उम्मीदों की किरण जगाई जाती है....

एक सपने को मेरी आंखों में आबाद किया गया है...

एक शहर मेरे अंदर बस गया है....

जिसे देख देखकर.....

मेरे अंदर की जिद्द ने भी जिद्द पकड़ ली है...

की मैने ""ये कर के दिखाना""" है.....

एक दीपक के लिए...

एक खुद के लिए...!!!!!

Saturday, 4 February 2023

अदरक वाली चाय

 तेरे शहर जो आऊं,कभी वक्त बेवक्त....

नाराजगी ठीक है .......अपनी जगह  है.....

मत करना गुफ्तगू, चाहो तो हमसे नजरें चुरा लेना.......!!

...मगर

एक दरख्वास्त है मेहरमां अजीज तुमसे,

बस लौटते वक्त अदरक वाली चाय ....पिला देना...!!...

2nd


चलो नज्मों को अदरक वाली चाय पिलाते है....

आधा कप, तेज पत्ती वाली चाय

अधूरी बातें और कुछ बेतुकी राय

कुछ मुझमे बसी तुम,कुछ तुझ में बचा मैं

चलो कुछ अधूरे किस्से सुनाते है

चलो नज्मों को अदरक वाली चाय पिलाते है....!!


3rd


गर उसके शहर फिर कभी जाना होगा...

नमकीनों के शहर में, उसे मेरी चाय पर आना होगा....

यूँही नशे सी बदनाम नही है अदरक वाली

दिसम्बर की ठंड में भी, उसे बिना स्वेटर के आना होगा.....

अलाव तापते तापते सुनेंगे उनके मासूम सवाल

मुस्कुरा कर टालूँगा देर रात तक......

मग़र चाय ठंडी होने से पहले मुझे जबाब पर आना होगा

गर उसके शहर फिर कभी जाना होगा....


4th 

तुमसे बेहतर इश्क़ मुझसे कौन निभाएगा....

मेरे पसंद की अदरक वाली चाय मुझे कौन पिलायेगा...



5th 


एक अधूरा खत और एक अधूरा पता

एक अधूरी गजल और एक छोटी सी खता

वो तेरा शहर और वो ठंडी शाम.....

बस वही एक आखिरी चाय , तेरे इंतजार में छोड़ी मेने....

बस यहीं एक नज़्म अधूरी छोड़ी मेने......



#sharma_deepu poetry for #tea_lover

#chay #tea #adarakWaliChay




Thursday, 1 December 2022

जिंदगी

 जिंदगी, एक रोज मैं तुमसे इस कदर मिलूंगा....

जिंदगी मैं तुमसे आखरी लम्हे पर मिलूंगा...

 सौंपकर रकीब हाथों में बिरासत, किन्हीं सरस लम्हों की,

जिंदगी तुमसे आखरी छोर पर मिलूंगा..........

कुछ दिमागी ख्यालों को भरके एक खाली कनस्तर में,

कबाड़ बेचूंगा सारी उलझनों और शिकायतों को...

सब मैदानों से परे, एक खाली टेबल पर...

जिंदगी मैं तुमसे एक, आखिरी चाय पर मिलूंगा...

जहां नियती से परे, मन ही मन सवाल होते है...

जहां खाली डायरी के कोरों पर कान होते है....

जहां मिटाई जाती है हर भूल पछतावे के रबड़ों से...

मैं सब सबूतों के साथ तुम्हें दोषी ठहराऊंगा..

तेरी ही अदालत में ए जिंदगी ....

.........मैं तुम्हें जज की कुर्सी पर मिलूंगा...

जिंदगी, एक रोज मैं तुमसे इस कदर मिलूंगा....

#sharmadeepu

#hindi

#poetry

#poetryBlog

#writerComunity

Wednesday, 16 November 2022

बज्म

 मैं वो जो शून्य था , सब परिधियों से पार था...

अचानक मैं खुद को किन बोसों की गस्त में ले आया हूं..

शब्द जो बस परिचित थे मेरी डायरी से...

मैं किन बाजारों में अपनी जिंदगी की बज्म ले आया हूं....

मैं खुश था , खामोश था, शब्द खाता था....

अचानक खुद को किस तिलस्म के आगोश में ले आया हूं.....

मैं जो ठहरा तालाब था, किन्हीं वीरान जगलों का....

खुद को किन बहती दरियाओं के मैदानों में ले आया हूं....!!

मेरे ख्यालों की कस्तियां , जिनकी दुश्मनी थी किनारों से

अचानक खुद को  किन रस्तों की धूल नापने ले आया  हूं.....

मेरे और मेरे बीच सब जहनी मंथन होता था हर रात...

मैं किन तंग गलियों में अपने कदम ले आया हूं.....

शब्द बस परिचित थे मेरी डायरी से...

मैं किन बाजारों में अपनी जिंदगी की बज्म ले आया हूं....

Saturday, 12 November 2022

वहम

 किन जंगलों से निकला था, किन रेगिस्तानों में आ गया हूं....

किन कागजों के बरके पलटे मैने....

....किन पत्थरों से ठोकर खा गया हूं...

किसके हिस्से का मुकद्दर चुराया मैंने.....

किसके हिस्से का वक्त चुराया मैंने....

किन जुर्म की दहलीजों पर कदम पड़े मेरे...

किन पथरीली सलाखों में आ गया हूं...

किन कागजों के बरके पलटे मैने....

....किन पत्थरों से ठोकर खा गया हूं...!!

किन शहरों को वीरान कर आया मैं...

किन दरखतों की छांव चुरा लाया हूं....

किसकी सल्तनत में बगावत की मैने...

किसकी जिंदगी से रस निचोड़ लाया हूं...

किन मरीचिकाओं का वहम खाया मैने...

किन उफानों का गलत अंदाजा लगा गया हूं.....

किन कागजों के बरके पलटे मैने....

....किन पत्थरों से ठोकर खा गया हूं...

किन जंगलों से निकला था....

किन रेगिस्तानों में आ गया हूं....!!

शोर शराबे के बीच पता नहीं

 किस खामोशी में आ गया हूं.....

किन्हें खबर है की खबरें खामोशी में दबी है होठों तले......

यहां अकेला सा पड़ गया हूं भीड़ भाड़ वाले शहर में.....

ना जाने किस बस्ती की राहों में भटक कर आ गया हूं ......!!

किन कागजों के बरके पलटे मैने....

....किन पत्थरों से ठोकर खा गया हूं...

घंटों वीरान इंसानी जंगलों में भटकता रहता हूं.....

आसमान के नीले सुर्ख रंगों को पढ़ता रहता हूं....

ये बदलती गर्म हवाओं का मिजाज भी ठंडा हो गया है.....

न जाने किस तपिश की आगोश में आ गया हूं....

किन कागजों के बरके पलटे मैने....

....किन पत्थरों से ठोकर खा गया हूं...


Sunday, 6 November 2022

आज का विचार


तुम्हें बस अपने असूलों से समझौता नही करना है,

कभी नहीं....

तुम्हे लड़ना सीखना है

अपने हक के लिए,

और

हक तभी जताया जाता है

जब आप उसके असल हकदार होने की योग्यता रखते हो....

......तो लड़ो,

खुद के बलबूते पर.....

अंत तक....

जबतक तुम पा ना लो...

लक्ष्य को....

साबित करो कि तुम योग्यता रखते हो .....

दिखाओ कि तुम आंखों में क्रांति रखते हो....

.....टूटना मत

जब तलक

वो आसमान झुक ना जाए...

Sunday, 16 October 2022

चेतना

 रह रह कर ये उम्मीदें जगती है...

हाथ तो उठाएं मग़र, अभी रस्ते में हैं

चेतना बदलते वक्त की मांग तो है

मगर आंखें बंधी है और किताब बस्ते में है...!!

यहां निरपराधी मारे जाते है

बचते है तो बस सफेद पहने जाहिल

ये पेड़ अगर तुमसे कटता है तो काट लो

तुम्हारा खून भी  गिरते पेड़ की जानिब सस्ते में है...!!

ये अंधकार ले डूबेगा प्रकाश को

फिर उम्मीदें नही रहेगी किसी को

पकड़ो इसे, हाथ लगाओ, मदद करो

ये आदमखोर सफेदपोशी आज हमारे दस्ते में है..!!!

चेतना बदलते वक्त की मांग तो है

मगर आंखें बंधी है और किताब बस्ते में है...!!

उठो कि देर ना हो जाए,

उठो कि तुम्हारी सांसें ढेर ना हो जाए...

उठो कि तुम्हारी गिरेबान तक हाथ ना पहुंचे...

संभलों ए भविष्य की आधारशिलाओं....

तुम्हारा हाल  ए मुस्तकबिल खस्ते में है....

चेतना बदलते वक्त की मांग तो है

मगर आंखें बंधी है और किताब बस्ते में है...!!

Tuesday, 20 September 2022

Aasmaan

 मैं जब भी पाता हूं खुद को दोराहे पर.....

मैं कंधों पर जिम्मेदारी की थकान देखता हूं....

मैं देखता हूं खुद को जमीं पर पैर जमाए हुए....

मैं हाथों में मेहनत की लकीरें और पैरों तले आसमान देखता हूं...

मैं आंखों से नीला आसमान देखता हूं....

मैं रुकता नहीं हूं बीच सफर में , कभी खुद के लिए....

मैं मंजिल और मंजिल से उस पार अपना मकान देखता हूं....

मुश्किलें तो आयेगी , ए राही - मेरे रुकने का सवाल ही नहीं...

मैं वक्त और वक्त से पहले सफर का इंतजाम देखता हूं.....

ये दर्द अब रोक नहीं सकते मुझे बुलंदियों को छूने से.....

मैं हाथों में मेहनत की लकीरें और पैरों तले आसमान देखता हूं...

#sharma_deepu

#poetries 


Saturday, 17 September 2022

फकीरी

 


वो जो आज जीते है...

वो जो वर्तमान जीते है....

जिंदादिल होते है वो जो वक्त जीते है...

कोई मंजिल जीता है, कोई मुकाम को जीता है...

कोई शुरुआत जीता है, कोई विराम जीता है....

फकीर होते है वो जो सफर का आराम जीते है...

वो जो वक्त के पन्नों पर अपनी स्याही से तकदीर लिखते है...

वो जो उम्र की बोतल को एक एक घूंट पीते है...

वो जो भविष्य की ललकार को चुनौती देते है....

वो जो रुकते है तो बस, वर्तमान की ठोकर खाने...

वो जो नियमों को ताक पर रख कर जीते है...

फकीरी जीते है वो, जो असफलताओं के जाम पीते है...

बुजदिल रखते है नाकामियों को दिमाग में,

वो जो इन्हें दिल में रखते है, सफलताओं का वर्तमान जीते है...

~~~~शर्मा_दीपू


Tuesday, 13 September 2022

मन गंगा (Man-Ganga)

 एक दरिया को गंगा होना है.....

मन को मन ही मन धोना है....

एक दरिया को गंगा होना है....!!

राख उड़ेगी मैले मन पर....

अंदर का बारूद जलाना है...

पहाड़ों से गिरकर इस नीरा को....

एक नया मैदान बनाना है....

मिट्टी से मिट्टी ले ले कर....

मिट्टी हवाले होना है....

एक दरिया को गंगा होना है....!!

पहाड़ों से नीचे गिरना है....

पत्थरों से रगड़कर सोना है ...

ठंडी कोमल धाराओं को.....

किसी यमुना सा मिलना है ....

आखर छोड़ मैदानों को.....

पारावर हवाले होना है.....

एक दरिया को गंगा होना है.....

मिट्टी से मिट्टी ले ले कर....

एक दरिया को गंगा होना है...!!

मन को मन ही मन धोना है....

एक दरिया को गंगा होना है....!

प्रीत, मीत की रीत यही है...

मन गंगा की जीत यही है...

जब मरना ही है आखर अर्णव में...

अंततः अंत समर्पण करना है...

जिंदगी की अंतिम धाराओं में....

नया सुंदर- वन बसाना है...

एक दरिया को गंगा होना है.....

मन को मन ही मन धोना है....

एक दरिया को गंगा होना है....!!

#sharma_deepu

#hindiDivas 

#hindiPoetry

#Ganga


Sunday, 11 September 2022

कभी कभी

मेरी लड़ाईयां खुद से है.....

मेरी कहानियां खुद से है....

मेरे सवाल खुद से है....

मेरे ज़बाब खुद से है....

मेरी जंग खुद से है....

मेरी आंखों में रंग खुद से है.....

ये खुद से लड़ाईयां भी कमाल होती है, कभी तुम हारते हो ,

कभी जीतने के लिए दम लगाते हो, और फिर हार जाते हो, कभी कभी सवालों में इतना उलझ जाते हो कि बस इनसे पार पाना संभावनाओं की परिसीमा से बहुत दूर होता है....

कभी कभी मन की खाली दीवारों से टकराते ख्यालों में बस कुछ कर गुजरने की चाहत बड़े जोर जोर से तूफान लाती है और फिर सामना होता है हकीकत की उन मजबूत दीवारों से जिनसे टकराकर तुम्हारे ख्वाब बस चूर चूर हो जाते है....

कभी कभी तुम इस हद से भी पर चले जाते हो जहा से लौट कर वापिस आने पर बस खामोशी शेष बचती है जो घाव करती है गहरे दिल और दिमाग पर, जिन पर मलहम लगाने की कवायद भी तुम्हें चोटिल कर देती है.....

कभी कभी किन्हीं सवालों के भंवर में फंसे तुम्हारे उद्वेग बस खामोश बेबसी की राह तकते है की कहीं ये तूफान खामोश हो और ये जिंदा ख्वाब फिर हरे हो....

कभी कभी तुम अंदर से इतने खोखले हो जाते हो की बस तुम अपने आप को ही मन ही मन खाते हो.....

और भूख बढ़ाते हो खुद की....

कभी कभी उन मनघड़ंत विचारों को भी खामोशी से मंथन करते हो जो तुम्हें अंदर से झकझोर के रख देती है और तुम बस राह ढूंढते रह जाते हो कि इस भंवर से बाहर भी आएं तो कैसे??

कभी कभी बोझिल मन से कलम उठाई जाती है तो बस मन को शांत करने के लिए खाली बरके पलट लिए जाते है, भावो को उतार लिया जाता है एक नक्श पर की कहीं ये भी मेरी तरह अंदर ही अंदर मर ना जाए....

आखिर में तुम एक ऊर्जा बटोरते हो, खुद को ललकारते हो, विचारों की दुनिया से बाहर आकर फकीरी चुनते हो, कर्म चुनते हो, दुनिया के रंगों को अपनी नजर से देखते हो, फिर कहीं सुकून जीते हो, खुश रहते हो.......

मोक्ष जीते हो....

फकीरी जीते हो...!!

Sunday, 4 September 2022

उड़ान

 तूं ख्वाइशों में अपनी , उड़ान रख....

पैरों में जमीं , आंखों में आसमान रख...

दिलों में हौसला, खून में उबाल रख....

तूं ख्वाइशों में अपनी , उड़ान रख....

रख मंजिल पर निगाहें, उलझनों पर पांव रख...

मेहनत की ढाल से, दुश्मनों पर दांव रख....

मुश्किलों के दरयाव में, जज्बे की नांव रख...

लबों पर खामोशी, आंखों में तूफान रख...

तूं ख्वाइशों में अपनी , उड़ान रख....

रख बंदिशें थोथे सपनों पर, पैरों में औकात रख...

संभाल के रख हार को, जीत पर सौगात रख...

मुर्दों की भीड़ में,  अपनी अलग पहचान रख....

लड़ खुद की कमजोरियों से, जज्बे में जान रख...

आंख रख दुश्मनों पे, दोस्तों पे कान रख....

तूं ख्वाइशों में अपनी , उड़ान रख.......

पैरों में जमीं , आंखों में आसमान रख...!!

#sharma_deepu



Friday, 19 August 2022

सफर जिंदगी का

 एक बात याद रखना मेरी

तुम्हें अकेले ही तय करना है ये सफर जिंदगी का....

यहां हर कोई साथ होने का दिखावा करेगा...

यहां साथ वही देगा, जिसे तुम पर यकीन है...!!

तुम्हें बस बढ़ते चलना है अपने सफर पर

मुकाम तक पहुंचने के बाद

तुम्हें सब यही जताएंगे कि वो तुम्हारे साथ थे...

मग़र सफर तुमने अकेले ही तय करना है....

जो अपने होते है, वो बस सफर में छांव बन जाते है..

जहां तुम्हें आराम करना है औऱ आगे बढ़ जाना है...

ये छांव पर है कि वो कहाँ तक साथ चलती है...

इसी से तय होता है, कौन कितना अपना है...!!


Monday, 15 August 2022

ख्वाब

 वो सब ख्वाब थे,

जो उड़ने आए थे,

मेरे पास,

अपने टूटे पंख लेकर.....

जिन पर कई निशान लगे थे,

चोटों के, घावों के...

 जिनसे रिसता खून 

बयां करता था कहानी

उस मंजर की,

कि कैसे वो लड़कर आए होंगे

जंजीरों से.....और अपनी तकदीरों से....

ये खग अब नभ देखेंगे...

उड़ते हुए आसमान की छत देखेंगे....

ये जमीं की हैसियत का मजाक बनाएंगे....

ये खुद को गगन का सरताज बनाएंगे....

ये ख्वाब अब निकल चुके है

अपनी मंजिल की ओर....

फिर से तूफानों से लड़ने....

अंधकार से लड़ने...

जंजीरों की दुनिया से कहीं दूर....

ये रास्ता अब मुकाम को जाएगा....

ये ख्वाब अब मेरे गाम (गांव) तक जाएगा...

कहां रुकते है सफरी, क्षणिक छांव में..

कहां रुकते है परदेशी, बेगाने गांव में...




कर्ज

 कुछ कर्ज अभी उधार है....

किसी वक्त के तलबगार है.....

किसी दर्द की सीहन सी उठ आती है....

एक जहरीली दवा का इंतजार है....!!

खाक ही खाक सी है जिंदगी....

खाक भी क्या खाक है....

जिंदगी है की कोरी राख है....

एक और आग की उम्मीदें है...

एक और चिंगारी का इंतजार है.....

रास्ते पर ही तो रास्ता होना है....

सपनों को भी एक दिन सपना होना है....

फूटेगी....आंख.....इक दिन अंधेरों की....

खुलेगी चेतना इक दिन सवेरों की....

बस मेरे हार मानने की दरकार है....

कुछ कर्ज अभी उधार है....

किसी वक्त के तलबगार है.....


लोग - ये लोग भी क्या कमाल करते है

 

ये लोग भी क्या कमाल करते है....

बिखरुं मैं, रोऊं मैं

मेरी आँखों पर, अपना रुमाल करते है....

ये लोग भी क्या कमाल करते है....

हंस लूं तो , हंसता क्यों है?

रोऊं तो, इतना कमजोर क्यों है?

लिखूं कुछ, तो लिखता क्यों है?

कामयाब हो जाऊं, तो कामयाब क्यों है?

मेरे घर जले चूल्हा, और लोग मलाल करते है...

ये लोग भी क्या कमाल करते है....

यहां दुनिया सिखाती है कि जीना कैसे है

अश्कों को आंख में ही बुझाना कैसे है...

खुद रहे निरक्षर जिंदगी भर,

और दूसरों को सवाल करते है....

ये लोग भी क्या कमाल करते है....

ज्ञान देते है, सीख देते है...

खुद के हाथ कटोरा, दूसरों को भीख देते है...

अपने गिरेबान में झांकने को राजी नहीं है लोग..

जमाने में बवाल करते है....

ये लोग भी क्या कमाल करते है....

खुद काटते है भगवान भरोसे...

बाकी जमाने की झूठी फिक्र तमाम करते है...

ये लोग भी क्या कमाल करते है....

ये दूध के धुले लोग, दाल में भी काला बताते है....

झूठ मिलाते है खबरों में, सच भी आधा बताते है..

ये खुद को खुद्दार बताने वाले लोग,

पैसों के लिए जूतियां भी चाट कर साफ करते है....

ये लोग भी क्या कमाल करते है...

ये मेरे कदमों पर चलने वाले....

आज मेरी पीठ पर, मुझही को बदनाम करते है...

हे भगवान, ये क्या ही कमाल करते है.....






Tuesday, 5 July 2022

लड़ने की सजा

 वक्त परिधियों तक सुलझ चुका, 

मैं अपनी कमजोरीयों से उलझ चुका,

हम कांच पर फैली रज से अब रजा पूछेंगे

हम किस्मत से लड़ने की सजा पूछेंगे....

पूछेंगे उनसे की रूठी किस्मतों को मनाएं कैसे

हम खुदा से भी उसकी खामोशी की वजा (वजह) पूछेंगे...

हम कांच पर फैली रज से अब रजा पूछेंगे....!!

किस्मत से लड़ने की सजा पूछेंगे....!!

ताक पर रखेंगे हम बेजान मोहरों को,

नियति और नीयत पूछेंगे मन के कोहरों को

मन के पहाड़ों से बरफें हटाएंगे,

लोगों के चेहरे से पर्दे उठाएंगे,

उतारेंगे ठंडे पलों को गर्म जज्बातों में

और दिसंबर की छांव से जेठ की धूप का मजा पूछेंगे.....

हम कांच पर फैली रज से अब रजा पूछेंगे....

किस्मत से लड़ने की सजा पूछेंगे...!!

हम लड़ते लड़ते पार पा जायेंगे, 

एक दिन हम मौत से भी बाज आ जायेंगे

हम लिखेंगे अपनी जीवनी , कभी जीवन के अंतिम मोड़ पर

हम सारे पापों को एक गठरी में तोलेंगे.

और बांध ले जायेंगे ये गठरी नरक और स्वर्ग के दोराहे तक

ठुकरा देंगे हम स्वर्ग को....और यमदूतों से नरक का मजा पूछेंगे..

हम कांच पर फैली रज से अब रजा पूछेंगे...

किस्मत से लड़ने की सजा पूछेंगे..!!


Tuesday, 21 June 2022

सब सच होने वाला है - motivational

 




ख्वाबों के परिंदे को मत बांध, 


उड़ जाने दे.....


बह जाने दे..........


इन पर लगाम लगाना ठीक नहीं है,


वरना ये मर जाएंगे.....


तड़फ तड़फ कर.......


तड़फना , तड़फाना ठीक नहीं है,


ये परिंदे भी तो हकदार है.....


उड़ान देखने के....

ये ख्वाब जो तुम बुन रहे हो,

मन ही मन,

ये सब सच होने है ..... एक दिन....

_

बस तुम आंखें खुली रखना.....

मंजिल पर निगाहें टिकाए रखना.....

एक परिंदा आएगा , संदेश लेकर 'कि'

......

" सब ठीक हो गया है"

#शर्मा_दीपू


Wednesday, 25 May 2022

कांच

कांच....

कोरा...

सफेद .. 

पारदर्शी.....

लिपटे जो रजत...

बन आईना...

तुम्हे, तुम्ही से ही तो मिलाता है.....

किसी आंतरिक ज्योति सा .. 

सफेद नियत वाले किसी दीपक की तरह...!!


पत्थर जो तुमने....

मारा है सच पर.....

पत्थर जो तुमने....

फेंका है अपने ही अक्ष पर....

ये बिखरेगा मन ही मन लहू की एक एक बूंद सा...

ये धार जो तुमने लगाई है,

टूटे काँच को ...;

ये तुम्ही को,

अफ़सोस ...........तुम्ही को खायेगा....!!

ये कांच जो बिखरा है ........अफ़सोस तुम्ही को खायेगा...!!

सहेजो  इस रेत को

प्यार से...दुलार से...

वरना चुभेगा...और बस तुम्हीं को चुभेगा...!!

अफसोस बस तुम्हीं को चुभेगा.......!!!!!

उतारो अपने झूठ को....

और समेट  लो ...... 

वक्त के पर्दे  में ....

ये चुभेगा तुम्हारे बदन को ......

अंदर ही अंदर .....


किसी नासूर सा .. ...

और .......अफसोस ........ये झूठ....... बस तुम्हीं को चुभेगा 

ये कांच......... बस .........तुम्ही को मन  ही मन खाएगा....


#शर्मा_दीपू #हिंदी #कविता #कांच 

#शब्द #शब्दार्थ 

#kavita #hindi 

#kanch #poetry

#hindi_poetry



Friday, 20 May 2022

jhooth -झूठ है सब कुछ 2

झूठ है सब कुछ


सत्य सिर्फ ये है

की सत्य ही झूठ है....!!!

झूठ है कि वफ़ा करता है शहर तेरा

सत्य सिर्फ ये है

की यहां 'वफ़ा' शब्द ही झूठ है....

झूठ है सब कुछ

स्याही में लिपटे जज्बात झूठ है...

रातों का इंतजार झूठ है...

मेरा प्यार झूठ है...

नम आंखे झूठ है...

झूठी है सारी शिकायतें....

ये लिखना भी झूठ है....

तू मेरा है....ये भी झूठ है

झूठ है सब कुछ

सत्य सिर्फ ये है

की सत्य ही झूठ है....

झूठ है की वफा करता है शहर तेरा....

सत्य सिर्फ ये है कि 

यहां वफा शब्द ही झूठ है.....!!

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Click Bitz - अधूरी दवात

लिख लिख कलम भी तोड़ी मैंने, बात शब्दों की डोर से पिरोई मैंने। कोरा कागज और लहू का कतरा, बस यही एक अधूरी दवात छोड़ी मैंने.....!! ......