सोचता हूं कि बिखरे लम्हे समेटूंगा कभी देर-सबेर
पर फिर कभी फुरसत नहीं मिलती....और कभी मैं खुद को भी नहीं मिलता..!!
सोचता हूं लम्हें कुरेंदेंगे कभी नदियों किनारे.....
एक दो गिलास जहर गले तक उतारेंगे....
कभी शाम को बैठेंगे अपने यारों के साथ.....
एक शाम मैं अपने लिए भी वक्त निकालूंगा....
मगर कभी मेरा मन नहीं होता.....और कभी कभी मुझे समय भी नहीं मिलता !!
सोचता हूं कि एक किताब में समेटु सारे अधूरे ख्वाबों को...
एक दो रंगीन कागज भी रखूं उनके बीचों बीच....
कभी कभी सोचता हूं कि ये सब उलझनें छोड़ दूंगा डायरियों में भरके....
फिर कभी डायरी नहीं मिलती, और कभी मेरे ख्यालों को, मैं भी नहीं मिलता...!!
😍😍😍👌👌👌😘😘😘
ReplyDeleteBahut wadia 👌
ReplyDeleteਬਹੁਤ ਵਧੀਆ ਜੀ
ReplyDeleteअति सुन्दर 👌
ReplyDeleteवाह बॉस
ReplyDeleteकोई जवाब नही 👌👌
Wah kya bat h deepak ji ,super 👍
ReplyDelete👌👌👌👍👍
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