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Thursday, 2 April 2020

बेजुबाँ चीखें

गर्म हो रही खामोशियाँ,
अब आहट चुभने लगी है....
बेजुबाँ चीखें अब उठने लगी है...!!
इशारा फिर हुआ है
मौत का तांडव फिर हुआ है
वक़्त अभी भी है,
धर्म अभी भी है,
तुम पर नाज अभी भी है
मेरी बातों में राज अभी भी है,
अधर्म की गठरी अब उठने लगी है...
गर्म हो रही खामोशियाँ, अब आहट चुभने लगी है...
बेजुबाँ चीखें अब उठने लगी है....!!
लालच, लाग-लपट अब धरा रहेगा,
धरा पर समाजवाद फिर हरा रहेगा,
मानुष-मानुष रक्त लड़ेगा,
आपस में अब वक्त लड़ेगा,
स्वार्थ-स्वार्थी मानवता अब आँखों में खटकने लगी है....
गर्म ही रही खामोशियाँ, आहट अब चुभने लगी है....!!
बेजुबाँ चीखें अब उठने लगी है....!!


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