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Sunday, 26 February 2023

स्वप्रेरणा-दीपक

 मैं थकू भी तो कैसे?

मेरे नाजुक कंधों पर मेरी जिद्द की लाशें सवार है ....

मैं रुकूं भी तो कैसे?

मेरे अंदर एक लहू दौड़ता है जज्बे का,जिम्मेदारियों का...!!

मुझ पर एक बादल है, 

जो हर रोज बरसता है मुझपे, मेरी जमीं को हरा करता है....

हर रोज मुझमें उम्मीदों की फसल उगाई जाती है....

हर रोज मुझे सींचा जाता है....

हर रोज मेरे तने को मजबूत किया जाता है....!!

मैं बैठूं भी तो कैसे??

मेरे अंदर एक दीपक हर रोज दीपक जलाता है....

हर रोज उम्मीदों की किरण जगाई जाती है....

एक सपने को मेरी आंखों में आबाद किया गया है...

एक शहर मेरे अंदर बस गया है....

जिसे देख देखकर.....

मेरे अंदर की जिद्द ने भी जिद्द पकड़ ली है...

की मैने ""ये कर के दिखाना""" है.....

एक दीपक के लिए...

एक खुद के लिए...!!!!!

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