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Tuesday, 20 September 2022

Aasmaan

 मैं जब भी पाता हूं खुद को दोराहे पर.....

मैं कंधों पर जिम्मेदारी की थकान देखता हूं....

मैं देखता हूं खुद को जमीं पर पैर जमाए हुए....

मैं हाथों में मेहनत की लकीरें और पैरों तले आसमान देखता हूं...

मैं आंखों से नीला आसमान देखता हूं....

मैं रुकता नहीं हूं बीच सफर में , कभी खुद के लिए....

मैं मंजिल और मंजिल से उस पार अपना मकान देखता हूं....

मुश्किलें तो आयेगी , ए राही - मेरे रुकने का सवाल ही नहीं...

मैं वक्त और वक्त से पहले सफर का इंतजाम देखता हूं.....

ये दर्द अब रोक नहीं सकते मुझे बुलंदियों को छूने से.....

मैं हाथों में मेहनत की लकीरें और पैरों तले आसमान देखता हूं...

#sharma_deepu

#poetries 


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