जिंदगी, एक रोज मैं तुमसे इस कदर मिलूंगा....
जिंदगी मैं तुमसे आखरी लम्हे पर मिलूंगा...
सौंपकर रकीब हाथों में बिरासत, किन्हीं सरस लम्हों की,
जिंदगी तुमसे आखरी छोर पर मिलूंगा..........
कुछ दिमागी ख्यालों को भरके एक खाली कनस्तर में,
कबाड़ बेचूंगा सारी उलझनों और शिकायतों को...
सब मैदानों से परे, एक खाली टेबल पर...
जिंदगी मैं तुमसे एक, आखिरी चाय पर मिलूंगा...
जहां नियती से परे, मन ही मन सवाल होते है...
जहां खाली डायरी के कोरों पर कान होते है....
जहां मिटाई जाती है हर भूल पछतावे के रबड़ों से...
मैं सब सबूतों के साथ तुम्हें दोषी ठहराऊंगा..
तेरी ही अदालत में ए जिंदगी ....
.........मैं तुम्हें जज की कुर्सी पर मिलूंगा...
जिंदगी, एक रोज मैं तुमसे इस कदर मिलूंगा....
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Nice 〰〰〰
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