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Monday, 2 October 2023

अब तलक

इन चोगाठों को समेत दरवाजे उखड़ जाना चाहिए था अब तलक ....
गुमराही एक मुद्दत हो गई, खिड़कियों से इंतजार करते हुए.....!!
इन अलमारियों से असल किताबें उतर जानी चाहिए थी अब तलक...
एक जमाना बीत गया जालिम, दीमकों का बाजार खुले हुए....!!
इन झीलों से अब तलक तो नमक बहकर आना चाहिए था....
मुझे एक नई शाम ढल आई , अधभरे घाव खोले हुए......!!
उस परदेशी को  लौट आना चाहिए था सफर से अब तलक....
कई बरस बीत चले है राही, मेरी मंजिल छूटे हुए.....!!
उन सैतानों का भी तो कब्जा होना चाहिए था अब तलक.....
कई दौर गुजर गए है, इंसानों की इंसानियत मरे हुए...!!

3 comments:

  1. अति सुन्दर रचना

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  2. Thanks on your marvelous posting! I seriously enjoyed reading it, you can be a
    great author. I will always bookmark your blog and will eventually come
    back later on. I want to encourage yourself to continue
    your great writing, have a nice evening!

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    Replies
    1. Thankyou so much buddy. Keep visiting,🥰🥰❤️❤️

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