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Tuesday, 9 October 2018

राव चन्द्रसेन

बहुत  दिनों से इच्छा थी राजस्थान के एक ऐसे योद्धा के बारे में लिखने की जिन्हे इतिहास का भूला बिसरा राजा कहा  जाता रहा है जी हाँ आज का हमारा ब्लॉग  है राव चंद्रसेन के बारे में



एक ऐसा वीर सपूत जिसने महाराणा प्रताप से भी पहले अकबर की नींद हराम कर दी थी।राव चन्द्रसेन का जन्म 30 जुलाई, 1541 ई. को मारवाड़ में हुआ इन्हे कई  नामों से पुकारा जाता है  मारवाड़ का प्रताप ,, प्रताप का अग्रगामी , मारवाड़ का भूल बिसरा राजा इत्यादि 

 डिंगल काव्य में कवी दुरसा आढ़ा ने राव चन्द्रसेन राठौड़ को इस तरह श्रद्धान्ज्ली दी...

अणदगिया तुरी उजला असमर,चाकर रहण न डिगिया चीत।

सारै हिन्दुस्थान तणा सिर,पातल नै चन्द्रसेन प्रवीत।।

"अर्थात मुग़ल काल में राजस्थान के दो ही ऐसे वीर यौद्धा  हुए जिहोने न तो अपना सर  झुकाया  और न  ही अपने घोड़ो  पर  शाही दाग लगवाया वो थे चंदरसेन और महाराणा प्रताप |

 चन्द्रसेन के जोधपुर की गद्दी पर बैठते ही इनके बड़े भाइयों राम और उदयसिंह ने राजगद्दी के लिए विद्रोह कर दिया। राम को चन्द्रसेन ने सैनिक कार्यवाही कर मेवाड़ के पहाड़ों में भगा दिया तथा उदयसिंह, जो उसके सहोदर थे, को फलौदी की जागीर देकर संतुष्ट किया। राम ने अकबर से सहायता ली। 

अकबर की सेना मुग़ल सेनापति हुसैन कुली ख़ाँ के नेतृत्व में राम की सहायतार्थ जोधपुर पहुंची और जोधपुर के क़िले मेहरानगढ़ को घेर लिया।

यहां एक मजेदार वाक्या ऒर होता है, साल 1570 अकबर द्वारा नागौर में दरबार लगाया जाता है, आसपास के सभी राजा उसके कदमों में उपस्थिति देते है, बीकानेर, जयपुर, मारवाड़ के उदयसिंह जो कि चंद्रसेन के बड़े भाई थे वो भी वहां उपस्तिथ होकर अकबर की अधीनता स्वीकार करते है,

राव चंद्रसेन भी अकबर दरबार मे जाते है और अकबर के फरमान को सुनते है, मगर दृढ़ संकल्पी इस वीर यौद्धा द्वारा अकबर के उस फरमान को नकारते हुए वहां से चले आते है।

यह ठीक वैसा ही है जैसे आप अपने गांव के जागीरदार के घर खाने पर तो जाओ मगर ये कहकर वहां से चले आओ की खाना अच्छा नही है मैं तो नहीं खाऊंगा।

 और यही से  प्रारम्भ हुआ राव चन्द्रसेन का अकबर से संघर्ष। चन्द्रसेन जी वहां से भाद्राजूण  और  फिर सिवाना की और चले गए,ये राजपुताना के पहले वीर थे जिन्होंने राजपाट को त्याग  कर जंगलो में जाना स्वीकार किया इसिलए इन्हे महाराणा प्रताप का पथ प्रदर्शक कहा  जाता है इसी दौर  में इनकी मुलाकात प्रताप  से भी हुयी , और समयांतराल में इन्ही के सुझाये पथ पर महाराणा प्रताप भी चले | राजपूताने के  इस वीर  ने मरते दम  तक  मुगलों के साथ संघर्ष को जारी रखा  और उनकी अधीनता  स्वीकार नहीं की।अकबर ने बहुत कोशिश की कि राव चन्द्रसेन उसकी अधीनता स्वीकार कर ले, पर स्वतंत्र प्रवृत्ति वाला राव चन्द्रसेन अकबर के मुकाबले कम साधन होने के बावजूद अपने जीवन में अकबर के आगे झुके नहीं और विद्रोह जारी रखा।

11 जनवरी 1581 का वो काला दिन जब 39 वर्ष की अतिअल्प आयु में राजस्थान के एक महान सपूत  की खाने में जहर देने से मृत्यु हो गयी। राव चन्द्रसेन के जीवन से मैं व्यक्तिगत रूप से अधिक प्रभवित  हुआ हूँ मैं शर्मा दीपू इनके जीवन चरित्र को सदर नमन करता हूँ और  इतिहास लेखकों से विनती भी करता  हूँ की वो अकबर को महान बताने की बजाय हमारे वास्तविक योद्धाओं को उचित सम्मान दें और उनकी गाथा का बखान करें!

धन्यवाद जय हिन्द जय भारत

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