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Sunday, 11 February 2024

कच्चे मकान

 मैं सूखे दरखतों तले, बारिश का इंतजार करता हूं.....

खो जाता हूं अक्सर बिखरी पत्तियों के धुंधलके में....

मैं कच्चे मकानों के उजड़ने जाने का इंतजार करता हूं....

कि कहीं और तो यात्रा करेंगे ये भूखे परिंदें ....

की ये मकाँ उजड़े तो नई जगह की तलाश होगी....

आदम जात है, गिरेंगे, लड़ेंगे, चलेंगे तो सीख जायेंगे.....

यूं तो टपकती छत से निकल पाना संभव नहीं गरीबी में....

कभी तूफानों से टकराएंगे तो जीने का जज्बा जागेगा....

मैं अक्सर सोचता हूं कि कैसे जी लेते है वो लोग दबकश में,

कैसे रह लेते है, एक ही जगह, बिना कुछ नया सीखे.....

हां कि तुमने, किताबें पढ़ीं है....

हां कि तुमने, कमाना सीख लिया है....

हां कि तुम अच्छे से जीवन बसर करते हो...

क्या तुमने जिज्ञासा को कच्चे मकानों से बाहर निकाला है???

क्या तुम अब भी बस ऊंचे ओहदे पर नौकरी पाना ही जिंदगी समझते हो???

यदि हां, तो मैं आज भी कच्चे मकानों के उजड़ने का इंतजार करता हूं....!!

#शर्मादीपू की कलम से

#जिज्ञासा #कलम #hindi 


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