मैं वो जो शून्य था , सब परिधियों से पार था...
अचानक मैं खुद को किन बोसों की गस्त में ले आया हूं..
शब्द जो बस परिचित थे मेरी डायरी से...
मैं किन बाजारों में अपनी जिंदगी की बज्म ले आया हूं....
मैं खुश था , खामोश था, शब्द खाता था....
अचानक खुद को किस तिलस्म के आगोश में ले आया हूं.....
मैं जो ठहरा तालाब था, किन्हीं वीरान जगलों का....
खुद को किन बहती दरियाओं के मैदानों में ले आया हूं....!!
मेरे ख्यालों की कस्तियां , जिनकी दुश्मनी थी किनारों से
अचानक खुद को किन रस्तों की धूल नापने ले आया हूं.....
मेरे और मेरे बीच सब जहनी मंथन होता था हर रात...
मैं किन तंग गलियों में अपने कदम ले आया हूं.....
शब्द बस परिचित थे मेरी डायरी से...
मैं किन बाजारों में अपनी जिंदगी की बज्म ले आया हूं....
FabulousFabulous
ReplyDeleteशानदार
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