अधूरी कुछ ख्वाइशें मेरी किताबों में दफन है...
हर रोज उखाड़ता हूँ लाशें ख्वाइशों की...
हर रोज नई लाशें दफ़नाता हूँ खुद की
हर रोज उम्मीदों पर मकबरे बनाता हूँ...
हर रोज कुरेदता हूँ बेजान घावों को...
ये दर्द अभी किन्हीं गहराइयों में दफन है...
अधूरी कुछ ख्वाइशें मेरी किताबों में दफन है...!!
कुछ वासिंदे आएंगे कब्र पर फूल चढ़ाने मेरे शहर से,
उन्हें संदेशा दे देना की याद आते हो,
उन्हें सँदेसा दे देना की लाशें जिंदा है...
ये कहलवा देना की हम लौट आये है
उन्हें कहलवा देना की लाशें बगावत करेंगी...
उन्हें कह देना की ऐलान कर दिया जाए मिरे शहर में...
लाशें ख्वाब ला रही है कंधो पर,
शहर ये ना समझे कि ख्वाइशें ख्वाबों में दफन है
अधूरी कुछ ख्वाइशें मेरी किताबों में दफन है...
Jai shri ram
ReplyDeletejai jai shree ram
Delete👍👍
ReplyDeleteMast
ReplyDeleteJust like a sun
ReplyDeleteAwesome 👍
ReplyDeleteशानदार
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