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Monday, 13 January 2020

JNU विवाद और पत्रकार

JNU  में चल रहे विवाद और उन पर चल रहे मीडिया जगत की बहस के बीच आम जनता को सच सुनने व समझने में दिक्कत महसूस होती नजर आ रही है।
आइये समझते है JNU का ताजा विवाद  क्या है, दरअसल  JNU  का विवादों से पुराना नाता रहा है, यहां के बुद्धिजीवी छात्र समय समय पर धरना आंदोलन में लगे रहते है, इसी कड़ी में JNU प्रशाशन द्वारा फीस में बढ़ोतरी किये जाने को लेकर कुछ छात्र धरना कर रहे थे, उनका कहना था कि फीस में कई गयी अप्रत्याशित बढ़ोतरी जो 300% तक थी उसे वापिस लिया जाए, उनका आरोप था कि यहां पढ़ने वाले गरीब छात्र इस फीस को वहन करने में असमर्थ है, वहीं दूसरा पक्ष ये भी कहा जा रहा है कि बढ़ी हुई फीस 300 रुपये प्रति महीना है जो कि पूर्व में 10 रुपये थी.
इसी कड़ी में एक ओर धरना जुड़ता है जब JNU प्रशासन छात्रों का रजिस्ट्रशन किया जा रहा था तो वामपंथी छात्रों द्वारा रजिस्ट्रशन आफिस को बंद कर दिया जाता है, व उसके सर्वर को नुकसान पहुंचाया जाता है, यह आरोप दिल्ली पुलिस व JNU प्रशासन द्वारा लगाया जाता है, जबकि छात्र वर्ग जो धरना व आंदोलन कर रहे थे उनका कहना है कि उनका आंदोलन शांतिपूर्वक था वे रजिस्ट्रेशन ऑफिस में गए जरूर थे क्योंकि यह आफिस उनके कॉलेज परिषर का हिस्सा है और इसी नाते उनका अधिकार है कि वो आफिस में प्रवेश कर सकते है लेकिन उन्होंने वहां कोई तोड़फोड़ नही की।
इसी दौरान कुछ वीडियो वायरल होते है जिनमे छात्रों द्वारा सर्वर को नुकसान पहुंचाने की बात सामने आती है,
इन्ही सब वाक्यों के दौरान ABVP के छात्रों का आरोप है कि वामपंथी छात्रों द्वारा उनके कुछ कार्यकर्ताओं को मार गया है, यह बात पुलिस ने भी अपनी हालिया प्रेस वार्ता में भी जाहिर की है।
उसके बाद 5 जनवरी को दोपहर पेरियार होस्टल में वामपंथी छात्रों द्वारा ABVP व अन्य दक्षिणपंथी छात्रों पर हमला कर उन्हें घायल किया जाता है, यह आरोप ABVP द्वारा लगाया जाता है।
रात्रि 12 बजे के आसपास साबरमती होस्टल के छात्रों पर ABVP व दक्षिण पंथी छात्रों द्वारा हमला कर वामपंथी छात्रों को घायल किया जाता है, यह आरोप वामपंथी छात्रों द्वारा लगाया जाता है
इसी दौरान पुलिस वहां घुसती है और बीचबचाव करती है वामपंथी छात्रों का आरोप है कि पुलिस देरी से पहुंचती है और तमाशबीन बनकर देखती है।
इसके बाद शुरू होता है राजनीतिक दलों व भारतीय प्रिंट, टेलेविज़न व सोशल मीडिया का कवरेज का दौर।
सभी न्यूज़ चैनल अपनी कवरेज दिखाने व बहस करवाकर TRP बटोरने में लग जाते है, सोशल मीडिया पर आरोप , प्रत्यारोप व गालियों का दौर शुरू हो जाता है,
कुछ न्यूज चैनल इसे आतंकवाद, देशद्रोह, व कट्टरपंथी चश्मे से दिखाना शुरू करते है व कुछ मीडिया घराने इसे आजादी की लड़ाई व छात्रों को भगत सिंह बनाने में लग जाती है,
इसी दौरान एक  इंडिया टुडे का एक स्टिंग ओप्रेसन आता है जिसे राहुल कंवल नाम के पत्रकार द्वारा लीड किया जाता है, इसमे एक छात्र द्वारा मास्क पहनकर गुंडई करने का कबूलनामा पेश होता है, राहुल कंवल द्वारा इसे ABVP का छात्र नेता बताया जाता है, तथा स्टिंग में छात्र द्वारा भी इस बात की पुष्टि की जाती है कि वह ABVP का कार्यकर्ता है।
हालांकि स्टिंग की ब्रॉडकास्टिंग के दौरान इस पर अक्टूबर की डेट में फिल्माया गया दिखता है, जिसकी वजह से स्टिंग को फर्जी माना जाता है, इसी कड़ी में आरोप प्रत्यारोप फिर सुरु हो जाता है।
 अब आते है विश्लेषण पर,
दरअसल मीडिया जगत पत्रकारिता करने की बजाय नतीजे पर पहुंचने की कोसिस में लगा रहता है, पत्रकार बंधु समाचार दिखाने की बजाय एक पक्ष को सही साबित करने की होड़ में रहते है, ये होड़ इस मीडिया को बिका हुआ, गोदी मीडिया, दलाल मीडिया आदि ताज पहनाने में सहायता करता है,
मैं JNU विवाद की तह तक जाने के काम जनता पर छोड़ना चाहता हूं, मैं ना लेफ्ट में हूँ ना राइट में ओर मेरे हिसाब से यही सच्ची पत्रकारिता भी है, अगर न्यूज़ चैनल ही नतीजे निर्धारित करने लगे तो पुलिस, कोर्ट ,संसद ,संविधान का मतलब ही क्या राह जाएगा।
जहां आशुतोष जैसे पत्रकार खुल कर वामपंथ का समर्थन करने पर उतर आते हो तो उनकी पत्रकारिता पर सवाल उठने लाजमी है.
पुनः यही कहूंगा, विवाद को समझाने की कोसिस कर रहे हो तो दोनों पक्षो की बातों को बराबर रखने का प्रयास करो, अगर एक पक्ष को ऊपर दिखाया तो आपकी पत्रकारिता डूब जाएगी।
धन्यवाद

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लिख लिख कलम भी तोड़ी मैंने, बात शब्दों की डोर से पिरोई मैंने। कोरा कागज और लहू का कतरा, बस यही एक अधूरी दवात छोड़ी मैंने.....!! ......