मैं मैं मैं उड़ते आकाश के पर ही तोड़ लाया....
वहम तब मिटा, जब अंधेरा छंटा,
जब शून्य से बाहर आया
मैंने जब उड़ते परिंदों को जमीं पर पाया..
तब याद आया
मैं तो अपने घर की छत ही तोड़ आया...!!
ये भूल कोई भूल से भूल रह गयी होगी...
मेरी आँखों में सनक की धूल रह गयी होगी,
मैं मैं मैं अपनी भूल सुधार आया...
जब गिर रहा था आकाश,
मैं उसके पंख फिर से ही जोड़ आया...!!
मैं उसके पंख फिर से ही जोड़ आया...!!
वहम तब मिटा, जब अंधेरा छंटा,
जब शून्य से बाहर आया
मैंने जब उड़ते परिंदों को जमीं पर पाया..
तब याद आया
मैं तो अपने घर की छत ही तोड़ आया...!!
ये भूल कोई भूल से भूल रह गयी होगी...
मेरी आँखों में सनक की धूल रह गयी होगी,
मैं मैं मैं अपनी भूल सुधार आया...
जब गिर रहा था आकाश,
मैं उसके पंख फिर से ही जोड़ आया...!!
मैं उसके पंख फिर से ही जोड़ आया...!!
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