यूँही दौर-ए-नफरत से किनारा होने चला था,
नफरत थी मुझे उसकी नफरत से,
मैं उसकी इन्ही आदतों का हत्यारा होने चला था.....!!
मैं बुझते दीपक को शाम समझ बैठा था,
अल्लाह कसम मैं पर्दे में था अब तलक,
ज्योंही उजाला दिखा मैं उजाला होने चला था.......!!
..!!
यूँही दौर ए नफरत से किनारा होने चला था....
यूँही दौर के नफरत से...........किनारा होने चला था....
नफरत थी मुझे उसकी नफरत से,
मैं उसकी इन्ही आदतों का हत्यारा होने चला था.....!!
मैं बुझते दीपक को शाम समझ बैठा था,
अल्लाह कसम मैं पर्दे में था अब तलक,
ज्योंही उजाला दिखा मैं उजाला होने चला था.......!!
..!!
यूँही दौर ए नफरत से किनारा होने चला था....
यूँही दौर के नफरत से...........किनारा होने चला था....
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