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Monday, 8 October 2018

तुम और मैं


तूं किसी सायर की ग़ज़ल,
मैं फकीर की बात होता हूं....
तूं आषाढ़ की खिलती धूप,
मैं अमावस की रात होता हूँ...
तुम उलझनों से भरी पहेली,
मैं कोरे कागज समान होता हूँ...
तुम उगते सूरज की किरण,
मैं अंधेर भरी शाम होता हूँ...
जय हिंद जय भारत
#शर्मा_दीपू™

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