कुछ सलाखें टूट नहीं पाई...
कुछ जख्म बाहर तक भी नहीं आए....
कुछ खो गए बदहाल भीड़ में....
कुछ ख्वाब मेरे शहर तक भी नहीं आए...
कुछ अधूरी रह गई कहानियां....
कुछ जिद्द बचपन में ही छोड़ आए ....
कुछ सवाल डूब मरे किस्तियों के सफर में.....
कुछ मारे डर के, बहर तक भी नहीं आए....
कुछ पहाड़ों ने भी रस्ते नहीं छोड़े...
कुछ सरिताओं को जिद्द करनी भी नहीं आई....
कुछ को जिम्मेदारियों ने उठा दिया सबेरे सबेरे......
कुछ सरकारी बाबू , दोपहर तक भी नहीं आए...
# hindi #poetry
👌👌😘😘😘
ReplyDeleteSandar👍👍😍😍
ReplyDelete👌👌👌
ReplyDeleteNice 👍
ReplyDeleteSuper
ReplyDelete👌👌👌
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