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Saturday, 29 July 2023

सवार हूं

दर्द का सैलाब हूँ...

हां मैं टूटता ख्वाब हूँ....

कभी बालू रेत सा गर्म

कभी हिमालय सा शांत हूँ....


मैं बारूद हूं ठंडी आग का....

मैं किसी योगी के धूंने की राख हू....

हां मैं फटेहाल किताबों की धूल हूं....

हां मैं शाश्वत श्लोकों की भूल हूं....

हां मैं उलझनों की किताबों का...

एक अनकहा सवाल हूं....

हां मैं टूटता एक ख्वाब हूं....

मैं सूखता सा पेड़ हूँ

हां मैं जड़ो पर सवार हूँ....

उम्मीद की किरण हूँ मैं

हां मैं डूबता अंधकार हूं....

हां मैं टूटता एक ख्वाब हूँ....

खंडहरों की दीवार का,

मैं गुनगुना सा अहसास हूं....

उड़ चुके रंगों का,

मैं धुंधलका एक आभास हूं....

युद्धों के अवशेषों से,चीखती खामोशियों में....

मौन पड़ी एक तलवार हूं...

मैं एक युद्ध का परिणाम हूं...

मैं एक टूटता सा ख्वाब हूं.....

उलझनों से बदहाल हूं....

पटरियों पर दौड़ता सा ख्वाब हूं.....

मैं उम्मीदों की आस पर टिकी,

रेंगती जिंदगी का हाल हूं..

खंगाल रहा हूं बहियां पुरानी....

मैं ठोकरों से शेष का सवाल हूं....

हां मैं टूटता एक ख्वाब हूं....



.......inspried by zakir_khan

#zakirkhan #poetry #shunya #hindi #sharmaDeepu #swaar

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लिख लिख कलम भी तोड़ी मैंने, बात शब्दों की डोर से पिरोई मैंने। कोरा कागज और लहू का कतरा, बस यही एक अधूरी दवात छोड़ी मैंने.....!! ......