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Sunday, 11 September 2022

कभी कभी

मेरी लड़ाईयां खुद से है.....

मेरी कहानियां खुद से है....

मेरे सवाल खुद से है....

मेरे ज़बाब खुद से है....

मेरी जंग खुद से है....

मेरी आंखों में रंग खुद से है.....

ये खुद से लड़ाईयां भी कमाल होती है, कभी तुम हारते हो ,

कभी जीतने के लिए दम लगाते हो, और फिर हार जाते हो, कभी कभी सवालों में इतना उलझ जाते हो कि बस इनसे पार पाना संभावनाओं की परिसीमा से बहुत दूर होता है....

कभी कभी मन की खाली दीवारों से टकराते ख्यालों में बस कुछ कर गुजरने की चाहत बड़े जोर जोर से तूफान लाती है और फिर सामना होता है हकीकत की उन मजबूत दीवारों से जिनसे टकराकर तुम्हारे ख्वाब बस चूर चूर हो जाते है....

कभी कभी तुम इस हद से भी पर चले जाते हो जहा से लौट कर वापिस आने पर बस खामोशी शेष बचती है जो घाव करती है गहरे दिल और दिमाग पर, जिन पर मलहम लगाने की कवायद भी तुम्हें चोटिल कर देती है.....

कभी कभी किन्हीं सवालों के भंवर में फंसे तुम्हारे उद्वेग बस खामोश बेबसी की राह तकते है की कहीं ये तूफान खामोश हो और ये जिंदा ख्वाब फिर हरे हो....

कभी कभी तुम अंदर से इतने खोखले हो जाते हो की बस तुम अपने आप को ही मन ही मन खाते हो.....

और भूख बढ़ाते हो खुद की....

कभी कभी उन मनघड़ंत विचारों को भी खामोशी से मंथन करते हो जो तुम्हें अंदर से झकझोर के रख देती है और तुम बस राह ढूंढते रह जाते हो कि इस भंवर से बाहर भी आएं तो कैसे??

कभी कभी बोझिल मन से कलम उठाई जाती है तो बस मन को शांत करने के लिए खाली बरके पलट लिए जाते है, भावो को उतार लिया जाता है एक नक्श पर की कहीं ये भी मेरी तरह अंदर ही अंदर मर ना जाए....

आखिर में तुम एक ऊर्जा बटोरते हो, खुद को ललकारते हो, विचारों की दुनिया से बाहर आकर फकीरी चुनते हो, कर्म चुनते हो, दुनिया के रंगों को अपनी नजर से देखते हो, फिर कहीं सुकून जीते हो, खुश रहते हो.......

मोक्ष जीते हो....

फकीरी जीते हो...!!

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Click Bitz - अधूरी दवात

लिख लिख कलम भी तोड़ी मैंने, बात शब्दों की डोर से पिरोई मैंने। कोरा कागज और लहू का कतरा, बस यही एक अधूरी दवात छोड़ी मैंने.....!! ......