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Tuesday, 5 July 2022

लड़ने की सजा

 वक्त परिधियों तक सुलझ चुका, 

मैं अपनी कमजोरीयों से उलझ चुका,

हम कांच पर फैली रज से अब रजा पूछेंगे

हम किस्मत से लड़ने की सजा पूछेंगे....

पूछेंगे उनसे की रूठी किस्मतों को मनाएं कैसे

हम खुदा से भी उसकी खामोशी की वजा (वजह) पूछेंगे...

हम कांच पर फैली रज से अब रजा पूछेंगे....!!

किस्मत से लड़ने की सजा पूछेंगे....!!

ताक पर रखेंगे हम बेजान मोहरों को,

नियति और नीयत पूछेंगे मन के कोहरों को

मन के पहाड़ों से बरफें हटाएंगे,

लोगों के चेहरे से पर्दे उठाएंगे,

उतारेंगे ठंडे पलों को गर्म जज्बातों में

और दिसंबर की छांव से जेठ की धूप का मजा पूछेंगे.....

हम कांच पर फैली रज से अब रजा पूछेंगे....

किस्मत से लड़ने की सजा पूछेंगे...!!

हम लड़ते लड़ते पार पा जायेंगे, 

एक दिन हम मौत से भी बाज आ जायेंगे

हम लिखेंगे अपनी जीवनी , कभी जीवन के अंतिम मोड़ पर

हम सारे पापों को एक गठरी में तोलेंगे.

और बांध ले जायेंगे ये गठरी नरक और स्वर्ग के दोराहे तक

ठुकरा देंगे हम स्वर्ग को....और यमदूतों से नरक का मजा पूछेंगे..

हम कांच पर फैली रज से अब रजा पूछेंगे...

किस्मत से लड़ने की सजा पूछेंगे..!!


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