ये शाम फिर गहराएगी...एक रोज....
और फिर...
आगोश में ले लेगी....उन सारी शिकायतों को ....
जो देर रात तक...नयनों के नाजुक कोनो पर....
पानी का घर करती है....!
जहां आकर डूबते है...सारे अरमान...
और खुदकुशी कर लेते है....!!
जहां से शुरू होती है एक ....
जंग जो तहस नहस कर डालती है....मन के शहर को....
उन वीरान जंगलों की तरह...
जो आगोश में आ गए थे किसी बारूदी आग के....
जहां कई घोंसले उजड़े थे....उन अनजान परिंदों के.....
जिनकी बिसात आसमान से पार ना पा सकी....!!
रातों के इस सन्नाटे में पसरे....
इस वीरान खामोशी को किसी....
गहरे सरोवर में विसर्जित करने...
की खवाइशें किसी उड़ते परिंदे ....
को पिंजरे में कैद करने जैसी है....
ये रात अब रात ही होगी....
लगता है आज फिर बरसात ही होगी....
मगर....
नयनों से.....!!
Superb
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