ये शहर मुझे रास नहीं आ रहा, मुझे मेरे घर जाना है....
एक किताब है कि पढ़ी नहीं जाती....
एक सीढ़ी है कि चढ़ी नहीं जाती....
एक मकान है कि ढह रहा है....
ये दुनिया मेरा दर्द समझ सकती ही नहीं,
मैने अपना जख्म सिर्फ खुदा को दिखाना है....!!
जरा संभल ए जिंदगी, अभी उलझनों से पार पाना है....
ये शहर मुझे रास नहीं आ रहा, मुझे मेरे घर जाना है....
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