ना जाने क्यों , अजीब सी घबराहट पाले बैठा हूँ..
ना जाने क्यों मैं उनके मन मे अपने लिए नफरत ढाले बैठा हूँ..!!
ना जाने क्यों उस मासूम से चेहरे को,
फ़ख्त एक नायाब शीशे में ढाले बैठा हूँ .
मेरा उनसे दूर रहना ही ठीक लगता है उन्हें
फिर भी ना जाने क्यों मैं बड़े अरसे से उसकी तलब पर बैठा हूँ!!
ना जाने क्यों , अजीब सी घबराहट पाले बैठा हूँ....!!
पर्दे खोल देना भी शायद ठीक नही था,
यूँही अपनी बातें थोप देना भी शायद ठीक नही था
कुछ राज, राज ही रहते तो ज्यादा अच्छा था..
यूँही उनकी नजरों में गिर गया राज बताकर
ना जाने क्यों आज भी एकतरफा उम्मीद लगाए बैठा हूँ....!!
ना जाने क्यों , अजीब सी घबराहट पाले बैठा हूँ.....!!
बहरहाल खुशी है कि दुनिया छोटी है इंटरनेट के जमाने में,
वरना अरसे बाद मिलने का सुख कहाँ मिलता है...
तकलीफें देना फिदरत नही है मेरी
फिर भी अनजाने की गलतियों पर माफी मांगे बैठा हूँ.
जिन्हें पाया ही नही अभी तलक
ना जाने क्यों ,उन्हें खोने का डर पाले बैठा हूँ .....!!
ना जाने क्यों , अजीब सी घबराहट पाले बैठा हूँ.....!!
Nice yaar
ReplyDeleteNice yaar
ReplyDeleteSuperb
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