उस रात किसी अपने ने मेरी नब्ज टटोली थी...
रहबर .....मैं सरोकार हुआ किसी मलहम से
मलहम ने मलहम से ही मेरी परतें खोली थी....
उस रात किसी अपने ने मेरी नब्ज टटोली थी....!!
रजरंजित इस आईने में चेहरा कोई उभरा था
फूंको से कोसिस हुई, मगर धूल गहरा था....
इंतजार हुआ पल दो पल का...
फिर पलट कर चलते बने
बिखर ना जाये ये शख्स, गर्द हटाने से
रहबर उसने शायद इसीलिए....धूल आईने पर ही छोड़ी थी..।।
उस रात किसी अपने ने मेरी नब्ज टटोली थी...
रहबर .....मैं सरोकार हुआ था किसी मलहम से
मलहम ने मलहम से ही मेरी परतें खोली थी....
उस रात किसी अपने ने मेरी नब्ज टटोली थी....!!
No comments:
Post a Comment