झूठे बाजार में सच कहाँ बिकता है,
तूफानों में फानूस कहाँ टिकता है,
बादलों से सूरज कहाँ छिपता है
जनाब राजनीति में ईमानदार कहाँ टिकता है?
राजनीति में ईमानदार कहाँ टिकता है
कहाँ दिखता है अंत आकाश को
कहाँ दिखती है आस निराश को
कहाँ दिखता है अंधकार प्रकाश को,
सभ्यता कहाँ दिखती है विनाश को.
सफर कहां रुकता है....
मूर्ख कहां झुकता है?
संतोष कहां दिखता है आदमजात को?
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