कुछ ग़ज़लें अभी बीमार पड़ी है,
कुछ मर चुकी, कुछ उसके कगार खड़ी है...!!!
कुछ मर चुकी, कुछ उसके कगार खड़ी है...!!!
कुछ अधूरी चल रहीं है...सफर ए जिंदगी में...
कुछ डूब चली है...कुछ डूबने को तैयार खड़ी है...!!
कुछ को वक्त ने मार दिया है...
कुछ खुद हालातों से जूझ रहीं है..
कुछ दबी पढ़ी है समय के पन्नों में,
जो बाहर आई जमाने में, सब की सब बेकार पड़ी है...
कुछ गजलें अभी बीमार पड़ी है....!!
कुछ को शब्द खा चुके....
कुछ शब्दों को दीमक खा चुकी है....
कुछ वक्त की कमी से जूझ रही.....
जो बच गई सारी दुविधाओं से......
सारी की सारी जहन में लाचार पड़ी है.....
कुछ गजलें अभी बीमार पड़ी है....
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Atidundar poetry
ReplyDeleteOhh ho 🔥
ReplyDeleteGood 👍👍👍
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