किन्हीं किनारों पर ठहरुं घड़ी भर, तो बात हो....
कहीं ये बारिश रुके दो पल, तो बात हो...
कहीं समय मिले, कहीं ये व्यस्तता की शाम ढले..
कहीं किसी मोड़ पर मन को सुकून मिले, तो बात हो...
कहीं ठहरें रेत के समंदर में, कहीं मन हल्का हो...
कहीं सुख दुख बांटे मित्रमंडली में बैठकर, तो बात हो...
कहीं ये व्यस्तता की शाम ढले, तो बात हो...
कहीं तो बैठकर डायरी खोलूं अपने मन की...
कहीं तो बोझ उतारूं अपने निजी जीवन का...
किसी शाम दीपक बनकर जलूं, तो बात हो...
एक दिन तो समय निकालूं, कि जीवन जिया जाए...
कहीं सफर से बाहर आऊं, तो बात हो..
कहीं रात भर अंगीठी जले, तो बात हो...
कहीं ये व्यस्तता की शाम ढले, तो बात हो...
अब इन जंगलों को आग लगाई जाए, छोटी झाड़ियां जलाई जाए...
बड़े दरख़्तों की टहनियां काटी जाए, घुप अंधेरा मिटाया जाए....
मेरे अंदर का ये सन्नाटा मिटाया जाए, तो बात हो...
डायरी भर के ये ख्याल बाहर आए, तो बात हो..
कहीं ये व्यस्तता की शाम ढले, तो बात हो...
#शर्मा_दीपू
Osam💗💗💯💥
ReplyDeleteSuperb 🌹💐💕
ReplyDeleteजोरदार
ReplyDelete👌👌😘😘😍😍
ReplyDeleteNice ❤️😘
ReplyDelete