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Sunday, 21 July 2024

Jindgi

 


वो जो किताबों से परे है सांई..

वो जो ख्यालों से इतर है सांई 

वो जिन पर सुकून ठहरता है...

कहां मंजिल की ठोर देखता है सांई...

सब मिलेगा....

जरा...हालातों को पलट कर तो देखो सांई ...

वो जिस से तुम उलझते हो सांई....

वो जिसे बुरा वक्त कहते हो.

वो सब मन का वहम है सांई...

सब तुम्हारी सोच के ठहराव का परिणाम है....

जरा इसे बदलो सांई....

नए सिरे से सोचो सांई....

ख्यालों के नए चश्मे लगाओ तो सांई....

उतर के नीचे आओ तो सांई...

नज्म कोई गुनगुनाओ सांई....

छोड़ो किताबें, जिंदगी थोड़ी जीओ साईं....

मजा सब सफर का है....

मंजिल की चिंता छोड़ो सांई...

मजा सब यहीं है मित्रा.....

ये पल सुकून से जिओ सांई....

सब सोच का खेल है सांई...

सब संतोष का खेल है....

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लिख लिख कलम भी तोड़ी मैंने, बात शब्दों की डोर से पिरोई मैंने। कोरा कागज और लहू का कतरा, बस यही एक अधूरी दवात छोड़ी मैंने.....!! ......