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Wednesday, 17 October 2018

अंधेरी निशां

तन ओढ़े पड़ा आवारा, खालिश गर्दीश सड़कों पर ...
उड़ती रज फांक रहा, भूख बढ़ाती आँतों पर..
लहू का कतरा कतरा चूस लिया ,
अब  आ बैठे निशाचर भी थककर हाथों पर.....
एक अँधेरी निशा फिर गुजारी करवट बदलते फुटपाथों पर...!!
इक अंधेरी निशां फिर गुजारी...
करवट बदलते फुटपाथों पर...
आस की बूंदे जब तलक चमकेगी अंधे कानूनों के कांटो पर,
सियासत जमेगी जब तलक अमीरों की खाटों पर...
तब तलक रोटी रोटी मसक्कत दिखेगी किसानों के माथों पर...
एक अँधेरी निशा फिर गुजारी करवट बदलते फुटपाथों पर..
एक अंधेरी निशां फिर गुजारी ........
अंधी बहरी सरकारों ने कब चीख सुनी है किसानों की...
राजनीति खेली जाती है दिखावटी धरने और आंदोलनों की....
ये खेल खत्म होगा एक दिन जब धरा सून हो जाएगी....
दाने दाने को को तरसेगी दुनिया, लिफाफे में बंद चून हो जाएगी....
कब सुधरेंगे हालत कब जूं रेंगेगी बहरों के कानों पर....
एक अँधेरी निशा फिर गुजारी करवट बदलते फुटपाथों पर..
एक अंधेरी निशां फिर गुजारी ........


#ShaRma_DeEpu 


जय हिंद जय भारत

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