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Saturday, 6 October 2018

अतीत

मवाद भरा जख्म हो चली, ये जिंदगी कितनी सुहानी थी
दुनियादारी की परिभाषा सीखाती..
मानवता का सबक सीखाती...
इंसानियत का मोल बताती...
वो यादें कितनी निराली थी,
आज मवाद भरा जख्म हो चली, कभी ये भी कितनी सुहानी थी...
कुछ अपनों को गैर बनाती...
कभी खुद को खुद से ही मिलवाती...
कभी गैरों की  याद दिलाती,
वो यादें भी  बहोत पुरानी थी।।।।
मवाद भरा जख्म हो चली, ये जिंदगी भी कभी सुहानी थी...
जय हिंद जय भारत

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